
विजयगढ़ दुर्ग
उत्तर प्रदेश के जनपद सोनभद्र में स्थित विजय गढ़ और अगोरी जैसे किले जो न सिर्फ पर्यटन बल्कि पुरातात्विक अध्यन दृष्टि से भी महत्त्व पूर्ण होने के साथ साथ सांस्कृतिक व एतिहासिक विरासत को अपने अंतर में संजोये होने के बाद भी शासन की उपेक्छा का दंश झेल रहे हैं. समय रहते अगर ध्यान न दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब समाज के सुनहरे आतीत के ये आईने- किले जो खंडहर बन चुके हैं धरासाई होकर अपना अतीत भी खो बैठेंगे I
सुप्रसिद्ध उपन्यास कार देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित नीरजा गुलेरी के निर्देशन पर बनी प्रख्यात टी.वी. धारावाहिक चंद्रकांता की लोकप्रियता के बाद जनपद सोनभद्र से २० किलो मीटर दूर जंगल पहाड़ो पर स्थित इस विजय गढ़ दुर्ग की लोकप्रियता भी बढ़ गई , पहाड़ पर सैकड़ो फिट ऊंचाई पर स्थित विजयगढ़ दुर्ग के निर्माण को लेकर कोई वैधानिक या सही जानकारी नहीं मिल पाई है पर कुछ विद्वानों
का मानना है की इस दुर्ग का निर्माण तीसरी शताब्दी में आदिवासी राजाओ द्वारा कराया गया था I
महाकवि वाड़भट्ट की विन्ध्याहवी वर्डन में सबर सेनापतियो का उल्लेख है.
महाकवि वाड़भट्ट का साधना स्थल भी सोन तट ही रहा है I
राजनयिक और अंग्रेजी शासन काल के दौरान वाराणसी के राजा चेतसिंह
विजयगढ़ दुर्ग से भी तमाम धन सम्पदा लेकर ग्वालियर की तरफ प्रस्थान किये थे,
शेरशाह शूरी का अधिकार भी इस विजयगढ़ दुर्ग पर रहा है I
प्रतिवर्ष यहाँ मीराशाह बाबा का उर्ष लगता है जिसमे हजारो की संख्या में हिन्दू और मुस्लिम भाई आते हैं और परस्पर सदभाव से
इस उर्स मेले का आयोजन करते हैं I वरिस्ट साहित्यकार देव कुमार मिश्र ने अपनी पुस्तक सोन की माटी का रंग
में विजयगढ़ दुर्ग पर संत सैयद जैनुल आब्द्दीन की मजार होने के सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है I श्री मिश्र ने लिखा है कि संत सैयद जैनुल आब्द्दीन शेरशाह शूरी के समय में थे और इनकी कृपा से ही बिना खून बहाए ही शेरशाह शूरी ने किले पर कब्ज़ा कर लिया था I
प्रतिवर्ष हजारो की तादात में शिव भक्त विजयगढ़ दुर्ग पर स्थित राम सरोवर तालाब से जल लेकर लगभग ६० किलोमीटर दूर स्थित शिवद्वार में भागवान शिव का जलाभिषेक करते है, जंगलो और पहाड़ो पर स्थित सैकड़ो फिट की उचाई पर स्थित इस सरोवर का पानी कभी कम नहीं होता है यह भी एक चमत्कार ही है जबकि इस पहाड़ के निचे उतरते ही यहाँ के स्थानीय लोगो को पेय जल के संकट का सामना
करना पड़ता है I
आदिवासी समाज के सुनहरे अतीत
का आइना अब खँडहर में परवर्तित होता जा रहा है पहाड़ पर बने इस दुर्ग को देखा जाये तो वास्तु कला का अद्वितीय उदाहरण देखने को मिलता है I
इस दुर्ग को समुद्रगुप्त ने चौथी सदी में जिस वन राज्य की स्थापना की थी उससे जोड़ कर भी
देखा जाता है I
तमाम विजयगढ़ और अगोरी किले के ऐसे

अनसुलझे सवाल हैं जो खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं I
विजयगढ़ दुर्ग पर बने राम सागर तालाब के अथाह जल सागर, इन किलो के निर्माण,
शिल्प कल खंड जानकारी के साथ, इसके वैज्ञानिक अध्यन के साथ पुरातात्विक व
वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता को भी नजर अंदाज किया जाता रहा है I
विजयगढ़ व अगोरी जैसे किले तमाम विरासत को अपने अंतर में संजोये
रखने के बाद भी शासन व प्रशासन के उपेक्छाओ का दंश झेल रहा है, शीघ्र
ही यदि इसपर ध्यान न दिया गया तो वह दिन दूर नहीं कि ये ऐतिहासिक
विरासत केवल इतिहास के पन्नो में ही देखने को मिलेंगे .....
विजयगढ़ के बारे में अच्छी जानकारी मिली परन्तु यह ३ ऱी सदी का तो हो ही नहीं सकता. लगता है आप स्थानीय हैं. खोज बीन कर किले के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. बल्कि मैं यों कहूँगा की अब यह आप की ही जिम्मेदारी होगी. पुरा धरहरों में आपकी रूचि के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteविजयगढ़ दुर्ग के बारे मेँ अच्छी जानकारी मिली सोनभद्र मेँ रहकर भी सोनभद्र को अपना समझने वाले लोग बहुत कम हैँ ज्यादातर लोग बाहरी हैँ सोनभद्र के मूल निवासियोँ के दु:ख दर्द परेशानियोँ के बारे मेँ भी लिखिये(प्रभाकर विश्वकर्मा ps50236@gmail.comमोबाइल नम्बर09455285351और088968727ब्लाग WWW.prabhakarvani.blogspot.com)
ReplyDeleteजानकारी देता आलेख...
ReplyDeleteबधाई....
आपने अच्छी जानकारी दी है ...धन्यवाद
ReplyDeleteक्या आपके पास श्री देव कुमार मिश्र जी की पुस्तक सोन के पानी का रंग उपलब्ध है?
ReplyDeleteक्या मध्य प्रदेश हिंदी अकादमी में देव कुमार मिश्र लिखी सोन के पानी का रंग मिल जाएगा। कृपया 94062 13643 में जानकारी देने का कष्ट करें।अरपा उद्गम बचाओ संघर्ष समिति पेंड्रा छत्तीसगढ़आपका हार्दिक अभिनंदन करती है
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